Delhi Artificial Rain : दिल्ली की जहरीली हवा में छठ पूजा पर बढ़ा संकट, प्रदूषण से निपटने के लिए हो सकती है कृत्रिम बारिश
Rain in Delhi : दिल्ली के कई इलाकों में शुक्रवार सुबह का AQI 400 के पार था जिससे हवा बेहद जहरीली हो गई। यहाँ के प्रमुख इलाकों में AQI की स्थिति इस प्रकार रही:
नई दिल्ली, Artificial Rain in Delhi : छठ पूजा के सुबह के अर्घ्य (Chhath Puja Morning Arghya) के अवसर पर दिल्लीवासियों ने आज जैसे ही उगते सूरज को जल चढ़ाया वैसे ही राजधानी की जहरीली हवा ने उनकी सांसें और मुश्किल कर दीं। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Delhi AQI) खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। सरकार और स्थानीय प्रशासन इस प्रदूषण से निपटने के लिए हर संभव उपाय कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब दिल्ली में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराने की योजना पर तेजी से काम किया जा रहा है।
दिल्ली की हवा में ज़हर
दिल्ली के कई इलाकों में शुक्रवार सुबह का AQI 400 के पार था जिससे हवा बेहद जहरीली हो गई। यहाँ के प्रमुख इलाकों में AQI की स्थिति इस प्रकार रही:
आनंद विहार: 400+
बवाना: 403
न्यू मोती बाग: 429
मुंडका: 428
विशेषज्ञों के अनुसार जब AQI 400 से ऊपर हो जाता है तो इसे ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा जाता है। यह हवा बच्चों बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों के लिए बेहद खतरनाक मानी जाती है।
प्रदूषण से निपटने का नया हथियार?
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के कारण अब कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) पर विचार हो रहा है। इस तकनीक का उपयोग पहले अमेरिका रूस चीन और यूएई जैसे देशों में हो चुका है। हाल ही में गुरुग्राम की एक सोसायटी ने सफलतापूर्वक कृत्रिम बारिश कराई थी जिससे साबित हुआ कि इस तकनीक से प्रदूषण कम किया जा सकता है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर कई पत्र लिखे हैं। उनका कहना है कि कृत्रिम बारिश के जरिए दिल्ली की जहरीली हवा को साफ किया जा सकता है। हालांकि यह प्रक्रिया पूरी तरह से केंद्र सरकार की देखरेख में होती है और इसके लिए कई तकनीकी संसाधनों की आवश्यकता होती है।
क्या है यह तकनीक?
क्लाउड सीडिंग का सीधा मतलब है बादलों की बुवाई करना। इसके लिए एक विशेष विमान को बादलों में सिल्वर आयोडाइड पोटेशियम क्लोराइड और सूखी बर्फ जैसे रसायन छिड़कने होते हैं। जब ये रसायन बादलों से मिलते हैं तो उनके घनत्व (Density) में वृद्धि होती है। इससे बादल भारी होकर बारिश के रूप में गिरते हैं। इस तकनीक का सबसे पहला सफल प्रयोग भारत में IIT कानपुर ने किया था। हालांकि यह तकनीक तभी कारगर होती है जब बादल पहले से मौजूद हों। अगर आसमान साफ है तो कृत्रिम बारिश कराना मुश्किल हो जाता है।
कैसे काम करती है कृत्रिम बारिश?
विमान के जरिए रसायन का छिड़काव: क्लाउड सीडिंग के लिए एक विमान आसमान में जाकर बादलों में सिल्वर आयोडाइड और अन्य रसायन छिड़कता है।
बादलों की बुवाई: इन रसायनों की प्रतिक्रिया से बादलों का घनत्व बढ़ जाता है।
बारिश के रूप में बूँदें गिरना: बादलों का घनत्व बढ़ने से वे भारी हो जाते हैं और बारिश के रूप में गिरने लगते हैं।
दिल्ली ही जिम्मेदार?
कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि दिल्ली में होने वाला प्रदूषण मुख्य रूप से स्थानीय कारणों से है। गाड़ियों से निकलने वाला धुआं कंस्ट्रक्शन साइट्स से उड़ती धूल और उद्योगों से निकलने वाले जहरीले गैसें इसकी प्रमुख वजह हैं। हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने का प्रभाव भी होता है लेकिन दिल्ली के अपने प्रदूषण में इसका हिस्सा अपेक्षाकृत कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दिल्लीवासियों ने व्यक्तिगत वाहनों की बजाय मेट्रो बस और अन्य सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना शुरू किया तो प्रदूषण के स्तर में सुधार आ सकता है। इसके अलावा रेड लाइट पर वाहनों का इंजन बंद करना और सीएनजी वाहनों का उपयोग बढ़ाने जैसे उपाय भी कारगर हो सकते हैं।
कृत्रिम बारिश से कितनी राहत?
दिल्ली सरकार की ओर से बार-बार केंद्र को कृत्रिम बारिश कराने की मांग की जा रही है। यदि इस तकनीक को सही समय पर इस्तेमाल किया जाता है तो वायु गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद है। दिल्लीवासियों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हवा साफ होगी और प्रदूषण से राहत मिलेगी। वहीं सरकार भी इस बात पर जोर दे रही है कि कृत्रिम बारिश के साथ-साथ दीर्घकालिक उपायों की भी जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचा जा सके।